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मरूस्थल की विषेषताएँ:-
पश्चिम/थार का मरूस्थल:-
जो अरावली के पष्चिम में फैला हुआ हैं। राजस्थान का सबसे बड़ा भौगोलिक प्रदेष जो 1,75,000 वर्ग किलोमीटर मेंफैला हुआ हैं। जो राजस्थान के कुल भू-भाग का 60% , 61% हैं।
जिसमें राजस्थान की 40% जनसंख्या निवास करती हैं।
मरूस्थल राजस्थान का सर्वाधिक जनसंख्या वाला भौतिक प्रदेष हैं। (राजस्थान के सबसे बड़ा भू-भाग)
मरूस्थल का उत्तर में विस्तार पंजाब, हरियाणा से लेकर दक्षिण में कच्छ तक हैंे।
पूर्व में अरावली पर्वत, पष्चिम में पाकिस्तान तक फैला हुआ हैं।
योजना आयोग व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार मरूस्थल में 11 जिलें हैं। इसमें हनुमानगढ़ शामिलनहीं हैं।
12 जिलें:- गंगानगर , बीकानेर , जैसलमेर , बाड़मेर , जालौर , चुरू , झुन्झनु , सीकर (षेखावटी) , जोधपुर , पाली , नागौर , हनुमानगढ़।
थार में बालूका स्तूपों का विस्तार 58% तक हैं।
बरखान:- भौतिक आकृति हैं, जो मरूस्थल में चलने वाली हवाओं के कारण
निर्मित अर्द्धचंद्राकार स्तूप होता हैं जो स्थानांतरित होते हैं।
निर्मित अर्द्धचंद्राकार स्तूप होता हैं जो स्थानांतरित होते हैं।
ऐसे टीले जोधपुर, सीमावर्ती बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर में सर्वाधिक हैं।
इसको मार्च आॅफ रेगिस्तान भी कहते हैं।
इनका मार्च पूर्व की ओर (अरावली की ओर) हैं।
प्लाया:- ये रेतीले मरूस्थल में हवाओं से निर्मित प्राकृतिक झील होती हैं,जो प्लाया कहलती हैं। (नाड़ी) जैसलमेर।
खड़ीन:- रेगिस्तान में मानव निर्मित झील होती हैं, वर्षां के दिनों में इनमें पानी इकट्ठा होता हैं व किसान इसके चारोंऔर खेती करते हैं, ऐसी कृषि को खड़ीन कृषि कहते हैं।
सेम :- जलप्लावित क्षेत्र होता हैं, ऐसे क्षेत्र का निर्माण अतयधिक सिंचाई के कारण तथा नहर के आसपास होता हैं।सेम क्षेत्र कृषि के लिए अनु-उपयोगी होता हैं। (बाड़मेर-कवास, मलवा)
इसके परिणामस्वरूप पर्यावरण असंतुलन, मिट्टी का अपरदन की समस्या उत्पन्न हो गई हैंे।
जोहड़ :- शेखवटी क्षेत्र में चूना बाहुल्य वाले भागों में कम गहरे तलाबांे का निर्माण होता हैं, जिन्हे स्थानीय भाषा मेंजोहड़ या जोड़ा कहते हैं।
वेरा :- मारवाड़ क्षेत्र में (जालौर, जोधुपर, पाली) कुएँ को वेरा कहते हैं।
बावड़ी :- ये मानव निर्मित होती हैं जिसमें पानी निकालने के लिए सीढ़ियाँ होती हैं।
बीड़ :- शेखावटी, अजमेर, बीकानेर में घास के मैदानों को बीड़ कहते हैं। उदाहरण:- जोड़बीड़, जोहड़बीड़
गोडवाड़ :- लूनी नदी व अरावली के मध्य स्थित भू-भाग गोडवाड़ कहलाता हैं।
बांगड़ क्षेत्र :- अरावली के पष्चिम में शेखावटी प्रदेष से लेकर लूनी नदी के बेसिन तक फैला भौतिक प्रदेष। यह नदीऔर रेत से निर्मित भू-भाग हैं जो कभी कृषि के लिए उपयोगी था।
डोयला/डोई :- लकड़ी के चम्मच को डोलया कहते हैं। शेखावटी क्षेत्र में चाटु कहते हैं। कैर की लकड़ी से बनता हैं।
मरूस्थलीय वनस्पति :-
- मरूस्थलीय वनस्पति को जेरोफाइट कहते हैं।
- ऐसी वनस्पति कठोर छाल वाली होती हैं। जिसकी जड़ें गहरी, पत्तियाँ कांटों के रूप में पाई जाती हैं।
- मरूस्थलीय वनस्पति कठोर होती हैं, क्योंकि मरूस्थलीय जलवायु उष्ण कटिबंधीय हैं।
- ग्लोब पर कर्क व मकर रेखा के बीच का क्षेत्रफल उष्णकटिबंण्धीय होता हैं, जहां सूर्य की किरणें वर्षं के अधिकांषसमय तक सीधी पड़ती हैं।
(23)0 कर्क – 23)0 मकर)
- मरूस्थलीय वनस्पति को जेरोफाइट कहते हैं।
- ऐसी वनस्पति कठोर छाल वाली होती हैं। जिसकी जड़ें गहरी, पत्तियाँ कांटों के रूप में पाई जाती हैं।
- मरूस्थलीय वनस्पति कठोर होती हैं, क्योंकि मरूस्थलीय जलवायु उष्ण कटिबंधीय हैं।
- ग्लोब पर कर्क व मकर रेखा के बीच का क्षेत्रफल उष्णकटिबंण्धीय होता हैं, जहां सूर्य की किरणें वर्षं के अधिकांषसमय तक सीधी पड़ती हैं।
(23)0 कर्क – 23)0 मकर)
खेजड़ी :- उपनाम:-जांटी, शमी, थार का कल्पवृक्ष, थार की तुलसी।
- खेजड़ी की पूजा कृष्ण जनमाष्टमी व दषहरे पर होती हैं।
- दशहरे पर इसकी पूजा राजपूतों द्वारा की जाती हैं।
- इस अवसर पर अस्त्र-ष़स्त्रों की पूजा भी होती हैं।
- खेजड़ी का मेला जोधपुर के पास खेजड़ली गांव में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की नवमी को भरता हैं।
- कृष्ण पक्ष:- शुक्ल (सुदी) पक्ष
- सन् 1730 में खेजड़ी को बचाते हुए 363 स्त्री, पुरूष, बच्चे शहीद हो गए।
- चिपको आंदोलन की विचारधारा यहीं से उत्पन्न हुई।
- वर्तमान में चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा (उत्तरांचल के) हैं।
- सांगरी :- खेजड़ी का फल हैं। ;।चतपस दृ डंलद्ध
- मार्च में बगर यानि फूल लगते हैं, अप्रैल में सांगरी बनती हैं। (लूम)
- खेजड़ी की पूजा कृष्ण जनमाष्टमी व दषहरे पर होती हैं।
- दशहरे पर इसकी पूजा राजपूतों द्वारा की जाती हैं।
- इस अवसर पर अस्त्र-ष़स्त्रों की पूजा भी होती हैं।
- खेजड़ी का मेला जोधपुर के पास खेजड़ली गांव में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की नवमी को भरता हैं।
- कृष्ण पक्ष:- शुक्ल (सुदी) पक्ष
- सन् 1730 में खेजड़ी को बचाते हुए 363 स्त्री, पुरूष, बच्चे शहीद हो गए।
- चिपको आंदोलन की विचारधारा यहीं से उत्पन्न हुई।
- वर्तमान में चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा (उत्तरांचल के) हैं।
- सांगरी :- खेजड़ी का फल हैं। ;।चतपस दृ डंलद्ध
- मार्च में बगर यानि फूल लगते हैं, अप्रैल में सांगरी बनती हैं। (लूम)
रोहिड़ा :-
- राजस्थान का राज्य पुष्प हैं।
- रोहिड़े को राजस्थान का सागवान भी कहते हैं।
- राजस्थान के दक्षिण-पष्चिमी भाग (बाड़मेर, जोधपुर, जालौर) में रोहिड़ा सर्वाधिक पाया जाता हैं।
- रोहिडे़ का पुष्प केसरिया हिरमिच (गाढ़ा लाल) होता हैं।
- गर्मी के बढ़ने के साथ रोहिड़ा फलता-फूलता हैं।
- अप्रैल-मई में यह पूर्ण रूप से खिल जाता हैं।
- राजस्थान का राज्य पुष्प हैं।
- रोहिड़े को राजस्थान का सागवान भी कहते हैं।
- राजस्थान के दक्षिण-पष्चिमी भाग (बाड़मेर, जोधपुर, जालौर) में रोहिड़ा सर्वाधिक पाया जाता हैं।
- रोहिडे़ का पुष्प केसरिया हिरमिच (गाढ़ा लाल) होता हैं।
- गर्मी के बढ़ने के साथ रोहिड़ा फलता-फूलता हैं।
- अप्रैल-मई में यह पूर्ण रूप से खिल जाता हैं।
कैर :-
- मरूस्थलीय झाड़ी, जिसके फल का उपयोग सब्जी, आचार बनाने में किया जाता हैं।
- कैर पकने पर ढ़ालू बनता हैं। (लाल रंग का)
- मरूस्थलीय झाड़ी, जिसके फल का उपयोग सब्जी, आचार बनाने में किया जाता हैं।
- कैर पकने पर ढ़ालू बनता हैं। (लाल रंग का)
कुमटा :-
- जोधपुर, बाड़मेर में कुमटा के पेड़ सर्वांधिक पाए जाते हैं।
- इसके बीज को कुमटिया कहते हैं। जो सब्जी व आचार बनाने में काम आते हैं।
- कुमटा के कांटे टेढ़े होते हैं।
- जोधपुर, बाड़मेर में कुमटा के पेड़ सर्वांधिक पाए जाते हैं।
- इसके बीज को कुमटिया कहते हैं। जो सब्जी व आचार बनाने में काम आते हैं।
- कुमटा के कांटे टेढ़े होते हैं।
जाल :-
- मरूस्थलीय पेड़ जो पाली, जोधपुर, जालौर क्षेत्र में सर्वांधिक पाए जाते हैंे।
- इसका फल ग्रामीण क्षेत्र में पाया जाता हैं, जिसे पीलू कहते हैं।
- कैक्ट्स, थोर, नागफनी:- ये कांटेदार होते हैं।
- मरूस्थलीय पेड़ जो पाली, जोधपुर, जालौर क्षेत्र में सर्वांधिक पाए जाते हैंे।
- इसका फल ग्रामीण क्षेत्र में पाया जाता हैं, जिसे पीलू कहते हैं।
- कैक्ट्स, थोर, नागफनी:- ये कांटेदार होते हैं।
गूंदी/गूंदे :-
- पाली, जालौर, जोधपुर, सिरोह में सर्वाधिक पाए जाते हैं। इसका उपयोग आचार बनाने में किया जाता हैं।
- खेजड़ी सर्वाधिक नागौर में पाई जाती हैं।
- कीकर सर्वाधिक शेखावटी क्षेत्र में पाया जाता हैंे।
- पाली, जालौर, जोधपुर, सिरोह में सर्वाधिक पाए जाते हैं। इसका उपयोग आचार बनाने में किया जाता हैं।
- खेजड़ी सर्वाधिक नागौर में पाई जाती हैं।
- कीकर सर्वाधिक शेखावटी क्षेत्र में पाया जाता हैंे।
मरूस्थलीय जलवायु :- मरूस्थल में दो प्रकार की जलवायु पाई जाती हैं:-
उष्ण कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेष :-
इसके अंतर्गत सीमान्त जिले आते हैं। जैसे:- गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, पष्चिमी जोधपुर आदि।
उष्ण कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेष :-
इसके अंतर्गत सीमान्त जिले आते हैं। जैसे:- गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, पष्चिमी जोधपुर आदि।
शुष्क जलवायु :- जहां वर्षां की मात्रा औसत 10-15 सेमी. हैं। जहां गर्मी में धूल भरी आंधिया चलती हैं।
उष्ण कटिबंधीय अर्द्धशुष्क जलवायु वाला प्रदेष :-
इसके अंतर्गत अरावली के एकदम पष्चिम में स्थित जिले जैसे:- झुन्झनु, सीकर, चुरू, पाली, नागौर, जलौर, पूर्वीजोधपुर, कुछ हिस्सा सिरोही का अर्द्धषुष्क में आते हैं। जहां वर्षां की मात्रा 40 सेमी. के आसपास होती हैं।
इसके अंतर्गत अरावली के एकदम पष्चिम में स्थित जिले जैसे:- झुन्झनु, सीकर, चुरू, पाली, नागौर, जलौर, पूर्वीजोधपुर, कुछ हिस्सा सिरोही का अर्द्धषुष्क में आते हैं। जहां वर्षां की मात्रा 40 सेमी. के आसपास होती हैं।
