• राजस्थान में मानसून व जलवायु
मानसून और जलवायु
मानसून:-
![]() |
| राजस्थान में मानसून |
मानसून एक विषेश प्रकार की हवा होती हैं, जो अपने निष्चित मार्ग पर 6 महिने स्थल से जल की ओर एवं 6 महीने जल से स्थल की ओर चलती हैं। यह हवा अपने निष्चित मार्ग पर चलती हैं।मनसूनी हवाओं की खोज हिप्पालस ने की थी।राजस्थान में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर की मानसून की शाखाओं से वर्षा होती हैं भारतीय मानसून की उत्पत्ति हिन्द महासागर से होती हैं।राजस्थान की भौगोलिक स्थिति भारत के पष्चिम में हैं।अरब सागर से400 किलोमीटर दूर हैं इसलिए अरब सागर की शाखा राजस्थान में सबसे पहले पहुंचती हैं।अरब सागर की शाखा से दक्षिण राजस्थान में डुंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, सिरोही, राजसमन्द,भीलवाड़ा में वर्षां होती हैं
अरावली की स्थिति मानसूनी हवाओं के समानांनतर होने के कारण राजस्थान में वर्षां कम होती हैं।राजस्थान में वर्षां कम होने के कारण वनस्पति का अभाव व कमी,अत्यधिक गर्मी व मरूस्थल, अवरोधक का
अरावली की स्थिति मानसूनी हवाओं के समानांनतर होने के कारण राजस्थान में वर्षां कम होती हैं।राजस्थान में वर्षां कम होने के कारण वनस्पति का अभाव व कमी,अत्यधिक गर्मी व मरूस्थल, अवरोधक का
अभाव हैं।राजस्थान के पूर्वी भाग में बंगाल की खाड़ी व अरब सागर की दोनो शाखाओं से होती हैं। उत्तर - पूर्व में अरब सागर की शाखा व बंगाल की खाड़ी की शाखा आपस में मिलती हैं, इसलिए यहां वर्षां की औसत मात्रा अधिक होतीहैं। । माउन्ट आबू में राजस्थान में सर्वांधिक वर्षां होती हैं, (सर्वांधिक आद्र्स्थान व सर्वाधिक वर्षां वाला स्थान)
सिरोही व झालावाड़ में सर्वांधिक वर्षां होती हैं सर्वांधिक वर्षां वाला जिला:- झालावाड़, सर्वाधिक आद्र्रतम जिला।जुलाई (35%) और अगस्त (30%) के महीने में राजस्थान में सर्वांधिकवर्षां होती हैं।हिन्दमहासागर में उत्पन्न होने वाले मानसून को दक्षिण
पष्चिमी मानसूनकहते हैं।
मानसून का प्रत्यावर्तन (निवर्तन)/लौटना (षीतकालीन मानसून):-
इस मानसून की उत्पत्ति भूमध्य सागर से होती हैं, नवम्बर, दिसम्बर में भूमध्यसागर से ठण्डी हवाएं भारत की ओर चलती हैं।जिससे शीतकाल में भारत के उत्तर-पष्चिम में वर्षां होती हैं, जिसे राजस्थान में मावठ/ महावट कहते हैं।इस अवधि में (नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी) जम्मू कष्मीर, हिमाचल प्रदेषमें बर्फ गिरती हैं, जिससे उत्तर भारत में सर्दी बढ़ जाती हैं एवं शीतलहरचलती हैं। राजस्थान के उत्तरी जिलों में शीतकाल में सर्वांधिक वर्षां होती हैं। जैसे:-गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चुरू, झुन्झनु आदि। दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पष्चिम की ओर जाने पर वर्षां की मात्रा, वनस्पतिकी मात्रा में कमी आएगी। वनस्पति वर्षां का अनुसरण करती हैं।दक्षिण से उत्तर की ओर जाने पर वर्षां व वनस्पति में कमी आएगी।पूर्व से पष्चिम की ओर जाने पर वर्षां व वनस्पति में कमी आएगी। दक्षिण-पष्चिम से उत्तर- पूर्व की ओर जाने पर वर्षां में वृद्धि व तापमानमें कमी आएगी।राजस्थान की जलवायु का वर्गीकरण:-उष्णकटिबंधीय (अधिक तापमान) शुष्क जलवायु प्रदेष
उष्णकटिबंधीय अर्द्धषुष्क जलवायु वाले प्रदेष
उष्ण कटिबंधीय उपआद्र्र जलवायु वाले प्रदेष
उष्ण कटिबंधीय आद्र्र जलवायु वाले प्रदेष
उष्ण कटिबंधीय अति आद्र्र जलवायु वाला प्रदेष (सिरोही/झालावाड़)
उष्ण कटिबंधीय शुष्क जलवायु वाला प्रदेष:-
सीमावर्ती मरूस्थलीय जिलों में जैसे:- गंगानगर, बीकानेर, हनुमानगढ़, जैसलमेर, बाड़मेर, पष्चिमी जोधपुर।कोपेन ने इस जलवायु प्रदेष के लिए नाम दिया।इस प्रदेष में औसत ग्रीष्मकाल का तापमान 350 होता हैं, औसतशीतकालीन तापमान 120 होता हैं।इस प्रदेष का वार्षिंक औसत तापमान 250 होता हैं।
(480 (अधिकतम) $ 20 (न्यूनतम) = 50 » 2)
इस प्रदेष में सूर्य की किरणें सर्वांधिक तिरछी पड़ती हैं। (कर्क रेखा सेसबसे दूर)
सबसे सीधी बांसवाड़ा, सबसे तिरछी रेखा गंगानगर में (सूर्य की किरणें)
वर्षां की मात्रा 10 से 20 सेमी. तक होती हैं।
अर्द्धषुष्क जलवायु वाला प्रदेष:-
अरावली के पष्चिमी भाग में चुरू, झुन्झनु, सीकर, पाली, जालौर, जोधपुर, नागौर व बाड़मेर के पूर्वी भाग में फैली हुई हैं।
कोपेन ने इस प्रदेष के लिए (BWHW) नाम दिया।
इस प्रदेष में वर्षां की मात्रा 20 से 40 सेमी. तक होती हैं।
ग्रीष्म ऋतु में तापमान लगभग 360 सेल्सियस व शीतकाल में 1-150 सेल्सियस होता है। (औसत)
शीतकाल में इस प्रदेष में कभी-कभी पानी भी जम जाता हैं।
कांटेदार झाडियां पाई जाती हैं, ऐसी वनस्पति को स्टेपी/स्टेप्स कहते हैं।घास के मैदान पाए जाते हैं, जिन्हे बीड़ कहते हैं।इस प्रदेष से 1 वर्षं में 18 दिन वर्षां होती हैं। (औसत)
सर्वांधिक वर्षां 1 वर्ष में 40 दिन जिला झालावाड़ तथा उसके बादबांसवाड़ा में 35 से 38 दिन तक होती हैं।सर्वाधिक वर्षां वाला स्थान माउण्ट आबू हैं।उपआद्र्र जलवायु वाला प्रदेष:- राजस्थान के उत्तरी-पूर्वी भाग में जयपुर, अजमेर, टोंक, दौसा, भीलवाड़ा, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवांईमाधोपुर, सिरोही,राजसमन्द, पाली का पूर्वी भाग इस प्रदेष में वर्षां की मात्रा 40 से 60 सेमी. तक होती हैं।
नोट:- अर्द्ध शुष्क व उप आद्र्र के मध्य 50 सेमी. वर्षां वाली सीमा रेखाहैं। अरावली में वर्षां की मात्रा 50 सेमी. रहती हैं।
ग्रीष्मकाल में औसत तापमान 28.320 c तथा शीतकाल में 120 C होता हैं।
इस प्रदेष में शुष्क पर्णपाती वन पाए जाते हैं, जो मिश्रित प्रकार के होतेहैं।
इस प्रदेष में शीतकाल में चक्रवात से वर्षां होती हैं।
आद्र -जलवायु वाला प्रदेष:-
बांरा, कोटा, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, उदयपुर, भरतपुर, धौलपुर, सवांईमाधोपुर, करौली के सीमावर्ती प्रदेष।
यहां वर्षां की मात्रा 60 से 80 सेमी. होती हैं।तापमान ग्रीष्मकाल में 30.320ब् व शीतकाल में 100ब् होता हैं।मिश्रित पतझड़ प्रकार की वनस्पति पाई जाती हैं, जिसे शुष्क पर्णपातीवन या मानूसनी वन भी कहते हैं।इस प्रदेष को कोपेन ने (CWG) नाम दिया हैं।अतिआद्र्र जलवायु वाला प्रदेष:- दक्षिणी-पूर्वी सीमावर्ती भाग:- झालावाड़, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, माउण्टआबू।
वर्षां की मात्रा 100 से 150 सेमी. होती हैं।
यहां पर मानसूनी वनस्पति पाई जाती हैं।
ग्रीष्मकाल में तापमान 28.300 C व शीतकाल में 100 C रहता हैं। कोपेन ने इस प्रदेष को (AW) का नाम दिया हैं।
